आज पेन को देखकर याद आया कब से खाली पड़ा था ये कागज़ जिसे हमेशा ये सोचकर संजोय रखता था की जब लिखूंगा इसपे कुछ लिखूंगा और ये कहकर न जाने कितने कागज़ संजो दिए गए पर वो पेन यूँ ही सूख गया बिना अपनी स्याही को कागज़ पर उतारे ना जाने किस कोने में पड़ा था ये सोचकर एक दिन तुम्हें मेरी याद आएगी और उस दिन मैं तुम्हरी ऑंखों में चमकता नज़र आऊंगा। तुम कई बार कोशिस करोगे जोरो से ये भी हो सकता है अपने हाथों से रगड़ कर मेरे ठन्डे जिस्म को गर्म करने की कोशिश भी करो और जब तुम्हारी हिम्मत जवाब दे जाएगी तब तुम्हें मेरी जान में जान आती नजर आएगी और तुम्हें उस पल ये एहसास होगा कि मैं क्या खो रहा था ? किसके पीछे भाग रहा था? खैर दौड़ती-भागती जिंदगी में अगर तुम्हें मेरी याद आयी तो ये मेरी खुशकिस्मती है क्यूंकि पहले तो सिर्फ सपने ही वर्चुअल थे और तुम्हारी इमेजिनेशन जो तुम किसी के कहने पर करते थे अब तो सब कुछ वर्चुअल ही हो रखा है। जो तुम्हारे होंठो के हिलने से लेकर पलकों के झपकने, तुम्हरी उँगलियों के छुअन मात्र से ही सब अंजाम कर देता है।
ये कोन था ?
खैर...... आखिर में बोल ही पड़ा पेन मेरा पर अब कोशिस करूँगा की कम से कम एक मुलाक़ात तो रोज करू तुमसे, उतारूं तुम्हें भी किसी कैनवास या उड़ते हुए उन कागज़ो पर जिन पर छापखाने की स्याही हो एक तरफ और घोलकर उन सारी बातों को जो आतें जातें रास्तों पर कभी कभी आवारा सड़को इतफ़ाक़ से टकरा जाती है मुझ से..